खेती में उर्वरकों का सही उपयोग फसलों की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होता है। किसान अक्सर यूरेया और डीएपी (Diammonium Phosphate) उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि ये नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं। परंतु, इन उर्वरकों का सही समय और सही तरीके से छिड़काव (स्प्रे) होना चाहिए तभी वे बेहतर परिणाम देते हैं। गलत समय या मात्रा में उपयोग से फसल को नुकसान पहुंच सकता है या उत्पादन कम हो सकता है।
आजकल किसानों के बीच यूरेया और डीएपी के संयुक्त स्प्रे का चलन बढ़ा है। इससे पौधों को पोषक तत्व तेजी से मिलते हैं और फसल की वृद्धि अच्छी होती है। हालांकि, इस स्प्रे के लिए कुछ नियम और सावधानियां होती हैं, जिन्हें किसान को जरूर जानना चाहिए ताकि फसल को ज्यादा लाभ मिले और कोई नुकसान न हो। इस लेख में यूरेया-डीएपी स्प्रे के सही समय, तरीके और सावधानियों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा, जो हर किसान के लिए उपयोगी हैं।
फसलों पर Urea-DAP स्प्रे कब और कैसे करें?
Urea-DAP स्प्रे का महत्व और उपयोग
यूरेया में नाइट्रोजन होता है जो पौधों की हरी पत्तियों और बढ़त के लिए आवश्यक है। वहीं, डीएपी में फॉस्फोरस होता है जो जड़ों के विकास में सहायक होता है। दोनों उर्वरकों को एक साथ उपयोग करने से पौधों को संतुलित पोषण मिलता है।
स्प्रे करने का तरीका अलग-अलग फसलों और विकास के चरणों पर निर्भर करता है। आमतौर पर, यह स्प्रे पत्तियों पर किया जाता है ताकि पौधों द्वारा पोषक तत्व का अवशोषण जल्दी हो सके। स्प्रे के लिए यूरेया और डीएपी को पानी में घोलकर उपयोग किया जाता है।
Urea-DAP स्प्रे का सही समय
- पहला स्प्रे: फसल की सक्रिय वृद्धि के चरण में, जैसे प्रेरित तने निकलने (tillering) या शाखा बनने के समय, जो लगभग 30-35 दिन बाद होता है।
- दूसरा स्प्रे: पहला स्प्रे के 20-25 दिन बाद या फूल आने से पहले।
- मौसम: सुबह या शाम के समय, जब पत्तियों पर ओस न हो और तेज धूप न हो।
- बारिश से बचाव: स्प्रे के 12 घंटे बाद बारिश होने पर स्प्रे दोबारा करना चाहिए।
Urea-DAP स्प्रे के लिए मात्रा
- लगभग 2-4 मिली लीटर यूरेया और डीएपी को एक लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
- प्रति एकड़ क्षेत्र के लिए स्प्रे के लिए अलग-अलग स्प्रेयर (knapsack, power sprayer, drone) के अनुसार मात्रा और पानी की जरूरत होती है।
सावधानियां और नियम
- स्प्रे के लिए चपटी फैन नोजल या कट नोजल का उपयोग करें।
- स्प्रे के समय तेज धूप से बचें ताकि पोषक तत्व जल न जाएं।
- जमीन में पहले से डाले गए नाइट्रोजन (जैसे डीएपी या कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर से) को न काटें, सिर्फ टॉप ड्रेसिंग की नाइट्रोजन को स्प्रे के अनुसार कम करें।
- जरूरत के अनुसार स्प्रे की संख्या बढ़ा या घटाई जा सकती है।
यूरेआ-डीएपी स्प्रे का उपयोग कब जरूरी है?
- जब फसल की पत्तियों में पोषक तत्व की कमी हो, जैसे पत्तियां पीली होना, कम विकास।
- फसल की वृद्धि बढ़ाने के लिए।
- सूखे या जड़ की पोषक तत्व मात्रा कम होने पर।
Urea-DAP स्प्रे के लाभ
- पौधों को जल्दी पोषण मिलता है।
- फसल का विकास और उत्पादन बेहतर होता है।
- मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
- पर्यावरण को कम नुकसान।
Urea-DAP स्प्रे : सारांश तालिका
वस्तु | विवरण |
उर्वरक का नाम | यूरेआ (Urea) और डीएपी (DAP) |
पोषक तत्व | नाइट्रोजन (N) और फॉस्फोरस (P) |
पहला स्प्रे की समयावधि | 30-35 दिन बाद – प्रेरित तने बनने का चरण |
दूसरा स्प्रे की समयावधि | 20-25 दिन बाद या फूल आने से पहले |
स्प्रे की मात्रा | 2-4 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में |
स्प्रे के लिए उपकरण | Knapsack, Power sprayer, Drone |
सबसे उपयुक्त समय | सुबह या शाम, जब पत्तियों पर ओस न हो |
सावधानियां | तेज धूप में स्प्रे न करें, बारिश के बाद दोबारा स्प्रे करें |
उर्वरक कटौती | बेसल नाइट्रोजन न काटें, केवल टॉप ड्रेसिंग नाइट्रोजन काटें |
स्प्रे के प्रभावी उपयोग के टिप्स
- बोतल को अच्छी तरह हिलाएं।
- स्प्रे के दौरान पत्तियों के दोनों तरफ समान रूप से छिड़काव करें।
- फसल के प्रकार और जरूरत के अनुसार स्प्रे की संख्या और मात्रा समायोजित करें।
- स्प्रे के बाद पानी न लगाएं, ताकि पोषक तत्व पत्तियों पर बने रहें।
- जैविक और रासायनिक उर्वरकों के साथ मिश्रण करने से पहले जांच लें।
किसान को जरूरी बातें
- हर खेत की मिट्टी की जांच कराएं, ताकि सही मात्रा में उर्वरक का उपयोग हो।
- प्रत्येक फसल के लिए अनुशंसित डोज का पालन करें।
- सरकारी योजनाओं और किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करें।
- अत्यधिक उर्वरक उपयोग से बचें, इससे न तो फसल बेहतर होती है और न ही मिट्टी।
Disclaimer:
यह जानकारी भारत सरकार के कृषि विभाग और ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) द्वारा जारी आधिकारिक मार्गदर्शकों एवं अनुसंधानों पर आधारित है। यूरेआ-डीएपी स्प्रे एक प्रमाणित और विश्वसनीय तरीका है जो किसानों को फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है। यदि कहीं कोई अफवाह या गलत रिपोर्ट मिलती है तो सरकार द्वारा स्वतंत्र जांच और वैज्ञानिक अध्ययन से इसकी पुष्टि होती रहती है। इसलिए किसी भी नयी तकनीक को अपनाने से पहले सरकारी प्रशिक्षण और मान्य स्रोतों की सलाह आवश्यक है।